हिंदू घरों में बहुत सारी परंपराओं का पालन होता है. जैसे कि कब, कैसे और कहां खाना चाहिए? कैसे सोना चाहिए? घर का सुशोभन कैसे होना चाहिए? इस आर्टिकल में हम लोग कुछ ऐसी हिंदू घरेलू मान्यताओं(Hindu tradition) और उनके पीछे क्या विज्ञान(science) है यह जानने का प्रयत्न करेंगे.
1. स्नान के बाद ही भोजन क्यों करना चाहिए?
शास्त्रों के अनुसार बिना स्नान किये भोजन करना वर्जित है. शास्त्रों के अनुसार स्नान करके पवित्र होकर ही भोजन करना चाहिए. बिना स्नान किये भोजन करना पशुओं के समान है और अपवित्र माना गया है. ऐसा करने से देवी देवता क्रोधित हो जाते है.
वैज्ञानिक तर्क (scientific reason):
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्नान करने से शरीर की गंदगी निकल जाती है तथा शरीर में नई ताजगी तथा स्फूर्ति आती है. स्नान करने के बाद स्वाभाविक रूप से भूख लगती है. उस समय भोजन करने से भोजन का रस शरीर के लिए पुष्टिवर्धक होता है.
जबकि स्नान करने से पूर्व खाना खाने से पेट की जठराग्नि उसे पचाने में लग जाती है. खाना खाने के बाद नहाने से शरीर ठंडा हो जाता है जिससे पेट की पाचन क्रिया मन्द पड़ जाती है और पाचन शक्ति कमजोर पड़ जाती तथा पेट के रोग हो जाते है.
इसलिए हमेशा स्नान करने के बाद खाना चाहिए. और खाने के बाद कभी स्नान करना नहीं चाहिए.
2. भोजन की शुरुआत में तीखा खाना तथा अंत में मीठा क्यों खाना चाहिए?
भारतीय परम्परा के अनुसार धार्मिक अवसरों या शुभ अवसरों पर शुरुआत में तीखा खाना खाया जाता है तथा बाद में मीठा खाया जाता है. आज भी ज्यादातर लोग अपनी दैनिक दिनचर्या में खाना खाने के बाद मीठा खाते हैं. एक कहावत भी है कि “खाने के बाद कुछ मीठा हो जाये”.
वैज्ञानिक तर्क (scientific reason):
विज्ञान और आयुर्वेद के अनुसार शुरुआत में तीखा भोजन करने के बाद पेट में पाचन तत्व तथा अम्ल सक्रिय हो जाते हैं. जिससे पाचन तंत्र तेज जाता है. तथा खाने के बाद मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है जिससे पेट में जलन या एसिडिटी नहीं होती है.
तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं. इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है. अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है. इससे पेट में जलन नहीं होती है.
3. दक्षिण दिशा या पूर्व दिशा में सिर करके ही क्यों सोना चाहिए?
धर्म शास्त्रों के अनुसार सोते समय आपका सिर दक्षिण या पूर्व दिशा में होना चाहिए तथा आपके पैर उत्तर या पश्चिम दिशा में होने चाहिए. मान्यता के अनुसार ऐसा न करने पर बुरे सपने आते हैं और ये अशुभ होता है.
वैज्ञानिक तर्क (scientific reason):
पृथ्वी के दोनों ध्रुवों उत्तरी (North pole) तथा दक्षिण ध्रुव (South pole) में चुम्बकीय प्रवाह (Magnetic flow) होता है. उत्तरी ध्रुव पर धनात्मक (+) प्रवाह तथा दक्षिणी ध्रुव पर ऋणात्मक (-) प्रवाह होता है. इसी तरह मानव शरीर में भी सिर में धनात्मक (+) प्रवाह तथा पैरों में ऋणात्मक (-) प्रवाह होता है. विज्ञान के अनुसार दो धनात्मक (+) ध्रुव या दो ऋणात्मक (-) ध्रुव एक दूसरे से दूर भागते हैं. (चुम्बक से आप यह परीक्षण करके देख सकते हैं.)
इसलिए जब हम उत्तर दिशा की ओर सिर करके सोते हैं, तो उत्तर की धनात्मक तरंग तथा सिर की धनात्मक तरंग एक दूसरे से दूर भागती हैं. जिससे हमारे दिमाग में हलचल होती है और बेचैनी बढ़ जाती है. जिससे अच्छे से नींद नही आती है और सुबह सोकर उठने के बाद भी शरीर में थकान रहती है।.जिससे Blood Pressure असंतुलित हो जाता है और मानसिक बीमारियाँ हो जाती हैं.
जब हम दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोते हैं तो दक्षिण की ऋणात्मक (-) तरंग तथा सिर की धनात्मक (+) तरंग आपस में मिल जाती हैं. जिससे चुम्बकीय प्रवाह आसानी से हो जाता है. और दिमाग में कोई हलचल नहीं होती है और अच्छी नींद आती है. सुबह उठने पर तरोताजा महसूस करते हैं तथा मानसिक बीमारियों का खतरा नहीं होता है.
जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है. शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है. इससे अल्जाइमर, पार्किंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है. यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है.
जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है. शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है. इससे अल्जाइमर, पार्किंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है. यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है.
4. जमीन पर बैठकर ही क्यों भोजन करना चाहिए?
पुराने समय में आज की तरह डाइनिंग टेबल पे नहीं, बल्कि जमीन पर आसन बिछाकर उस पर बैठकर भोजन करते थे. आज के समय में जमीन पर बैठकर भोजन करने की परंपरा लगभग ख़त्म सी हो गयी है. लेकिन हमें जमीन पर बैठ कर ही खाना चाहिए, इसका एक ठोस वैज्ञानिक कारण भी है.
वैज्ञानिक तर्क (scientific reason):
पालथी लगाकर बैठना एक योग आसन है जिसे सुखासन कहते हैं. इस तरह बैठकर भोजन करने से एक तरह से योग होता है तथा पाचन क्रिया अच्छी रहती हैं. इस आसन से मोटापा, अपच, कब्ज , एसिडिटी आदि पेट की बीमारियां नहीं होती हैं तथा मन शांत रहता है.
पालथी मारकर बैठने से मस्तिष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है. इस पोजीशन में बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से एक सिग्नल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये.
5. हरे पत्तो के तोरण दरवाजे पर क्यों लगाते है?
शादी की तरह एक शुभ अवसर ज्यादातर हिन्दू घरों में हरे पत्तो के बने तोरण दरवाजे पर लगाये जाते है. हरे पत्तों का तोरण लगाने से घर की शोभा तो बढ़ती है. साथ में इसके कुछ वैज्ञानिक फायदे भी है चलिए जानते हैं.
वैज्ञानिक तर्क (scientific reason):
ताजा हरे पत्ते हवा को फिल्टर करते हैं और आसपास के साफ और स्वच्छ बनाते हैं. हरे पत्ते कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में परिवर्तित करते है. इसलिए जो भी हवा दरवाजे से अति है वो शुद्ध हो के आती है. कभी कबार तोरण पे हल्दी भी लगाई जाती है जो बैक्टीरिया को मारने में मददगार साबित होते है.
दूसरा कारण ये है की हरा रंग मन को शांत करता है. इसलिए घर के प्रवेशद्वार पर ही आने वाला व्यक्ति हरा रंग देखता है जिससे उसका मन शांत हो जाता है. घर में कलेश कम होते है अगर व्यक्ति बहार के दुःख घर के बाहर ही छोड के आये तो.
6. ग्रहण के दौरान खाने की चीजों को दर्भा(कुसा) घास से क्यों ढका का जाता है?
सूर्य ग्रहण हो या फिर चंद्रग्रहण हमारे पूर्वज कहते हैं इस समय घर से बाहर निकलना बहुत ही अशुभ है. तथा इस ग्रहण के समय घर में रखी गई खाने पीने की चीजों को कहां से ढक दिया जाता है. खासकर खाने की चीजों को दर्भा(कुसा) घास से क्यों ढका का जाता है.
वैज्ञानिक तर्क (scientific reason):
ग्रहण के दौरान, पृथ्वी की सतह पर उपलब्ध प्रकाश विकिरणों की तरंग दैर्ध्य और तीव्रता को बदल जाती है. विशेष रूप से, नीले और पराबैंगनी विकिरण, जो उनकी प्राकृतिक disinfecting संपत्ति के लिए जाने जाते है. ग्रहण के दौरान पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होते हैं. इससे ग्रहण के दौरान खाद्य उत्पादों में सूक्ष्मजीवों की अनियंत्रित वृद्धि हो जाती है. जिससे यह खाने पीने की चीज है खाने लायक नहीं रहती है.
कुशा घास पर किये एक वैज्ञानिक अध्ययन में उन्होंने पाया कि यह घास लगभग 60% विकिरण को अवशोषित कर सकता है. इसी लिए ग्रहण जेसे विशिष्ट अवसरों पर कुशा घास एक प्राकृतिक निस्संक्रामक (disinfecting) के रूप में प्रयोग किया जाता है और इससे खाने की चीज़े बचाई जाती है.
7. ग्रहण के दौरान सूर्य को क्यों नहीं देखना चाहिए?
हमें पहले से बताया जाता है कि सूर्य ग्रहण के दरमियान सूर्य को कभी भी नहीं देखना चाहिए. सूर्य ग्रहण के दरमियान घर से बाहर निकलना भी वर्जित है. लेकिन ऐसा क्यों है? चलिए जानते हैं.
वैज्ञानिक तर्क (scientific reason):
इसके पीछे तर्क है कि नग्न आंखों से ग्रहण देख वास्तव में जोखिम है कि आपके रेटिना उस समय सूर्य से आने वाले तीव्र ultraviolet एवं Infrared प्रकाश से प्रभावित हो सकती है. प्रकाश-संवेदनशील कोशिकाओं को क्षति करके यह आँख की रेटिना को जला सकती है.
8. सूर्यास्त के बाद नाखूनों को नहीं काटना चाहिए?
हमें लगता है कि सूर्यास्त के बाद नाखून काटकर हमें दुर्भाग्य मिलेगा. सच में ऐसा होता है या एक मिथ्या धारणा है.
वैज्ञानिक तर्क (scientific reason):
पुराने दिनों में, कोई बिजली नहीं थी इसलिए अयोग्य प्रकाश व्यवस्था के कारण सूर्यास्त के बाद नाखून काटना खतरनाक हो सकता है. लेकिन आज के जमाने में बिजली के कारण प्रकाश पर्याप्त मात्रा में होता है. इसके लिए नाखून काटने में कोई गलत बात नहीं है. पहले के जमाने में यह सही था लेकिन आज के जमाने में यह बस खाली मिथ्या धारणा है.
हिन्दू धर्म तथा इससे जुड़े विज्ञान की विशेष जानकारी के लिए निचे दिए गए आर्टिकल देखे