छठ एक प्राचीन हिंदू त्योहार है. वैदिक काल से यह त्योहार भारत में मनाया जाता है. आज के समय में बिहार उत्तर प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा, बंगाल तथा नेपाल में छठ पूजा ज्यादा प्रचलित है. छठ पूजा कार्तिक महीने के छठे दिन होती है. छठ पूजा भगवान सूर्य तथा उनकी पत्नी देवी उषा को समर्पित है. लेकिन छठ पूजा क्यों की जाती है?
देवी उषा को छठी मैया के नाम से जाना जाता है. छठ पूजा में सूर्य को पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने और स्वास्थ्य, समृद्धि और प्रचुरता प्रदान करने के लिए धन्यवाद किया जाता है. हिंदू परंपराओं के अनुसार, सूर्य देवता सर्वोच्च देवता है जो इच्छा शक्ति, प्रसिद्धि, आँखें, सामान्य जीवन शक्ति, साहस और शासन का प्रतिनिधित्व करती है.
छठ का त्योहार चार दिनों तक चलता रहता है. जिसके दौरान भक्त, ज्यादातर महिलाएं, सूर्योदय और सूर्यास्त पर गंगा में पवित्र स्नान सहित सख्त अनुष्ठानों का पालन करती हैं, उपवास करती है. यह चारों दिन खाना एकदम सात्विक बनता है. नमक, प्याज, और लहसुन के बिना खाना पकाया जाता है.
छठ पूजा का इतिहास
वैसे तो छठ पूजा का इतिहास बहुत ही पुराना है. आर्य संस्कृति तथा बेबीलोनियन संस्कृति में सूर्य की पूजा होती आ रही है. हिंदू शास्त्रों में इसका वर्णन सबसे पहले रामायण में देखा गया था. 14 साल के वनवास के बाद भगवान राम कथा माता सीता छठ पूजा मुंगेर (जो आज के बिहार में है) में की थी. भगवान राम ने तथा सीता ने इस दिन उपवास रख के भगवान सूर्य की पूजा की थी. जिसके फलस्वरूप उन्हें लव तथा कुश मिले थे.
महाभारत में भी इसका उल्लेख है. भगवान सूर्य का पुत्र कर्ण छठ पूजा करता है ऐसा वर्णन महाभारत में है. बाद में पांडवों ने भी वन वास के दौरान अपना साम्राज्य वापिस पाने के लिए छठ पूजा का अनुष्ठान किया था.
अब जानते है की छठ पूजा क्यों की जाती है? इसके पीछे क्या विज्ञान है?
छठ पूजा के पीछे का विज्ञान
प्राचीन काल के ऋषियों छठ पूजा के समान प्रक्रिया का उपयोग करके अपने शरीर निर्वाह के लिए आवश्यक ऊर्जा उत्तपन करते थे. वे नहीं तो कोई भोजन लेते थे न पानी पीते थे. मात्र सूर्य की पूजा करके आवश्यक तत्व शरीर के लिए प्राप्त करते थे. ये जो प्रक्रिया है उसे विज्ञान में Photoenergization process कहते है.
कार्तिक महिना ये प्रक्रिया के लिए सर्वित्तम समय है. तथा खली पेट सूर्य के सामने रहने से वितानिम D सरलता से शरीर में शोषित हो जाता है. सूर्योदय तथा सूर्यास्त यह दो समय ऐसा रहते हैं कि जब सूर्य का प्रकाश आपके शरीर पर सीधा नहीं आता है. इसीलिए यह समय पर पूजा करने से आपको सूर्य का महत्व लाभ मिलता है.
छठ पूजा एक सचेत Photoenergization निर्माता प्रक्रिया है. उपवास के निर्धारित तरीकों से शुद्ध शरीर के साथ, वर्ति (भक्त) पानी में नाभि दुबे तब तक खडी होकर उगते तथा डूबते सूर्य की पूजा करती है जिससे फोटॉन आंखों में प्रवेश करते हैं और व्रती (भक्त) की त्वचा से गुजरते हैं और मस्तिष्क से गुजरते हैं, इसने एक जैव-इलेक्ट्रिकिटी उत्पन्न की है जो पूरे शरीर को सौर ऊर्जा से लगाती है.आख की रेटिना एक प्रकार की फोटोईक्लेक्ट्रिक अंग है, जो सूक्ष्म ऊर्जा को उजागर करती है, जब प्रकाश से अवगत होती है.
सूर्यास्त या सूर्योदय के समय सूर्य की तरफ देखने से बहुत ही सूक्ष्म विद्युत ऊर्जा रेटिना से बहती है. यह ऊर्जा (फोटो-जैव-बिजली) रेटिना से ऑप्टिक नसों द्वारा पीनियल (pineal) ग्रंथि में फैलती है. इससे पीनियल ग्रंथि की सक्रियता बढ़ जाती है. पिनील (pineal) ग्रंथि, पिट्यूटरी (pituitary) और हाइपोथेलेमस(hypothalamus) ग्रंथियों (एक साथ, तीन ग्रंथों को त्रिवेणी कहा जाता है) के करीब है. जिसके कारण इस प्रक्रिया में उत्पन्न ऊर्जा इन ग्रंथियों को प्रभावित करती है. नतीजतन, प्राणिक गतिविधि एकरूप हो जाती है, व्रत्ती(भक्त) को एक अच्छा स्वास्थ्य और एक शांत मन देता है.