होली एक लोकप्रिय प्राचीन हिंदू त्योहार है. होली को “वसंत का त्योहार”, “रंगों का त्योहार” या “प्रेम का त्योहार” के रूप में भी जाना जाता है. होली का त्योहार वसंत ऋतु की शुरुआत में आता है. होली में लोग रंगों से खेलते हुए पूरा माहौल आनंदमय हो जाता है. होली अपने साथ ढेर सारी ख़ुशियाँ लाता है इसीलिए इसे ख़ुशियों का त्योहार भी कहते हैं. लेकिन पूरे भारत में होली क्यों मनाई जाती है?
होली में लोग अब एक दूसरे के साथ रंगों से खेलते हैं. अपने गिले-शिकवे दूर करते हैं. एक दूसरों की ग़लतियाँ माफ करते हैं और साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं. फागुन महीने की पूर्णिमा की रात को होलिका दहन होता है. और दूसरे दिन होली मनाई जाती है. कई राज्यों में से धुलेटी भी कहा जाता है.
होली क्यों मनाई जाती है?
होलिका दहन असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है. भगवत पुराण में इसका वर्णन किया गया है. हिरण्यकश्यप नामक राक्षस के उधर भक्त प्रहलाद का जन्म हुआ था. प्रहलाद की विष्णु भक्ति हिरण्यकश्यप को पसंद नहीं थी. इसीलिए उसने अपनी बहन होलिका को प्रहलाद को मारने के लिए कहा था. प्रहलाद को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिम्हा का अवतार लिया और उसे बचाया था. इसी जीत के प्रतीक स्वरूप होलिका दहन किया जाता है.
होलिका दहन के दूसरे दिन लोग एक दूसरे के साथ रंगों से खेलते. इसके पीछे भी ऐसी कथा है कि इस दिन पहली बार राधा ने भगवान श्री कृष्ण को अपने मनपसंद रंग से रंगा था. इसीलिए होली के दिन भगवान श्री कृष्ण और राधा की मूर्ति को भी रंग लगाया जाता है
होली तथा विज्ञान
होली वसंत ऋतु में खेली जाती है जो सर्दी के अंत और ग्रीष्म के आगमन के बीच की अवधि है. इस अवधि में वातावरण में और साथ ही शरीर में बैक्टीरिया का विकास होता है. जब होलिकि दहन होता है तो आसपास का तापमान 50-60 डिग्री सेल्सियस के आसपास बढ़ जाता है. होलिका दहन के दौरान उसकी परिक्रमा करने की परंपरा है. इसके कारण हमारा शरीर भी गर्म होता है जो बैक्टीरिया को मार देता है. यह एक प्रकार का डिटॉक्सिफिकेशन है.
रंगों से खेलने के दो कारण है.
1) ठंड से गर्म होने तक मौसम में परिवर्तन होने के कारण शरीर के लिए कुछ स्वाभाविक आलस का अनुभव होता है,जो काफी स्वाभाविक है. इस आलस्य का मुकाबला करने के लिए, लोग ढोल, मंजीरा और अन्य परंपरागत उपकरणों के साथ गाने (फाग, जोगीरा आदि) गाते हैं. यह मानव शरीर को फिर से जीवंत करने में मदद करता है रंगों के साथ खेलते समय उनका शारीरिक आंदोलन भी प्रक्रिया में मदद करता है.
2) रंग मानवीय शरीर की फिटनेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. किसी विशेष रंग की कमी से एक बीमारी का कारण हो सकता है. और जब यह रंग तत्व आहार या दवाई के माध्यम से पूरक होता है, तब ठीक हो सकता है. प्राचीन काल में, जब लोग होली खेलना शुरू करते थे, उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए रंगों को प्राकृतिक स्रोतों जैसे हल्दी, नीम, पलाश (तेसू) आदि से बनाया जाता था. इन प्राकृतिक स्रोतों से बनाई जाने वाली रंगीन चूर्णों के शरीर पर लगाने और फेंकने से मानव शरीर पर एक चिकित्सा प्रभाव पड़ता है. इसमें शरीर का स्वास्थ्य और सौंदर्य बढ़ते है.