अश्विन माह के कृष्ण पक्ष के दौरान प्रत्येक वर्ष श्राद्ध या तर्पण हमारे पूर्वजों को दिया जाता है. हमारे पूर्वजों की अपूर्ण इच्छाओं को पूरा करने के लिए कई अनुष्ठान किए जाते हैं. लेकिन श्राद्ध क्यों किया जाता है?
श्राद्ध मूल रूप से एक संस्कृत शब्द है. श्राद्ध दो शब्द “सत” तथा “आधार” से बना हुआ है. इसका मतलब होता है कि कोई भी काम जो पूरी श्रद्धा से और निष्ठा से किया गया हो. श्राद्ध के 15 दिनों में हम लोग हमारे पूर्वजों को पूरी श्रद्धा और निष्ठा से याद करते हैं. पूर्वजों की याद में अलग-अलग अनुष्ठान किए जाते हैं और गरीबों को खिलाया जाता है.
श्राद्ध का उल्लेख हिंदू पुराणों में मिलता है खास करके गरुड़ पुराण में. कहा जाता है श्राद्ध का ज्ञान सबसे पहले ज्ञान ब्रह्मा जी के 10 वीं संतान ऋषि अत्रि को हुआ था. और उन्होंने यह ज्ञान अपने बेटे ऋषि निमी को दिया था. ऋषि निमी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने श्राद्ध अपने पितृ को अर्पण किया था.
चलिए अब जानते है की श्राद्ध क्यों किया जाता है? श्राद्ध के पीछे क्या विज्ञान है?
श्राद्ध तथा विज्ञान
औपचारिक रूप से इस रस्म का अर्थ यह है कि हमारे दिमाग को हमारे पूर्वजों के अधूरे कार्य को पूर्ण न होने के अपराध भाव से खुद को अलग करना. चिकित्सकीय रूप से, उस अपराध को दूर करने के लिए श्राद्ध में हम अनुष्ठान करते है और परिणामस्वरूप मानसिक बीमारी से बचते है.
अगर दूसरा पहलू देखे तो वैज्ञानिक तौर पर दक्षिणायन में मन की ज्यादा नकारात्मक स्थिति में रहता है. क्योकि इस समय रात दिन से अधिक लम्बी होती है. दक्षिणायन 14 जुलाई से शुरू होती है और 13 जनवरी को समाप्त होती है. दक्षिणायन के दौरान चातुर्मास अवधि (पहले चार महीनों) में मन में अधिकतम नकारात्मकता है. चातुर्मास में सावन, भडो, अश्विन और कार्तिक महीने हैं. इस समय हमें ज्यादातर हमारे पूर्वजों द्वारा रह गए अधूरे काम या इच्छा का एक अपराध भाव सताता है. यह एक मानवीय प्रकृति है.
सरल भाषा में कहे जब जानबूझकर या अनजाने में हमारे पूर्वजों ने गलतियों या बुरे कामों या पापों को किया है. वे हमारे जीवन में पितृ दोष के रूप में दिखाई देता है. जिसे किसी भी क्षेत्र में जीवन में हमारी सफलता का सबसे बड़ी बाधा मानी जाता है. यह पितृ दोष का अपराध भाव आपके दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों के दोरान याद आता रहता हे और हम ध्यान नहीं दे पाते. इसी अपराध भाव को दूर करने के लिए हम श्राद्ध करते है.