भारत में एक देवता और देवी मूर्ति के सामने नारियल फोड़ना एक आम बात है. हिंदुत्व के लगभग सभी प्रथाओं में नारियल एक आवश्यक भेंट है मूर्ति के सामने एक नारियल फोड़कर एक व्यक्ति का हर नया कार्य शुरू किया जाता है. क्या आपको पता है शुभ कार्य से पहले नारियल क्यों फोड़ते हैं? इस प्रथा के पीछे क्या तर्क है चलिए जानते हैं.
नारियल फोड़ने के पीछे का तर्क
एक समय पर, हिंदू धर्म में मानव और जानवरों का बलिदान बहुत आम बात थी. जब आदि शंकराचार्य ने कदम रखा, तो उन्होंने इस अमानवीय अनुष्ठान को बंद कर दिया. इस बलि प्रथा को बंद करने के लिए उन्होंने एक अच्छा तार्किक समाधान निकाला.
नारियल कई तरह से एक मानव सिर जैसा दिखता है. नारियल कई तरह से एक मानव सिर जैसा दिखता है. नारियल का बाहरी आवरण मानव बाल की तुलना में है. हार्ड खोल एक खोपड़ी की तरह है. अंदर पानी रक्त के समान है और कर्नल मानसिक स्थान है. उन्होंने जानवर या मानव की बलि की जगह पर नारियल की बलि चढ़ाना शुरू किया.
दूसरा कारण ये हे की नारियल का फल अहंकार का प्रतिनिधित्व भी है. अर्थात यह एक व्यक्ति की अहंकार का प्रतीक है. जब किसी व्यक्ति का अहंकार बहुत बड़ा होता है, तो वह किसी के सामने झुका नहीं. इसलिए भगवान से प्रार्थना करने से पहले मनुष्य को अपने यह अहंकार को तोड़ना बहुत जरूरी है. परमेश्वर के पैरो पर नारियल को तोड़ने की तुलना में कोई बेहतर प्रतिनिधित्व नहीं है.
नारियल को तोड़ने से मानव अपने अहंकार को वश में करता है. अपने आपको परमेश्वर के चरणों में समर्पित करता है. ऐसे अहंकार को छोड़कर अब इंसान भगवान से खुले दिल से कुछ भी मांग सकता है. ईश्वर और इंसान का एक अलौकिक संबंध बन जाता है.
नारियल को फोड़ने के पीछे एक और कारण भी है. नारियल एक ऐसा फल है जिसका छिलका अंदर का कोपरा तथा पानी सब उपयोग में आते हैं. नारियल का पानी बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक है और उर्जा बनाए रखता है शरीर में. नारियल का खोपरा खाकर आदमी अपनी भूख को मिटा सकता है. कोपरे में से तेल निकालकर उसका खाने में उपयोग कर सकता है. तथा बाहर के छिलके को चला कर खाना पका सकता है.
इसीलिए कोई शुभ कार्य शुरू करने से पहले नारियल को फोड़ते हैं. फोड़ने के बाद इसका सेवन करते हैं. जिससे आदमी फुर्तीला महसूस करता है और मेहनत और लगन से अपना कार्य आगे बढ़ा सकता है.