आपने मल्हार राग का नाम तो सुना ही होगा. इस मल्हार राग को अगर बखूबी से गया जाएं तो बिन मौसम भी बरसात बुलाई जा सकती है. ताना-रीरी बहने भारत के कुछ खास कलाकारों में से एक थी जिन्हे राग मल्हार में महारथ थी. ताना रीरी बहनों की इसी कला की वजह से तानसेन इनको सुनने के लिए दिल्ली से गुजरात तक भटकता हुआ आया था. चलिए आज विस्तार से जानते है इन कलाप्रेमी बहनों की कहानी.
मशहूर भक्तकवि नरसिंह मेहता के वंशज हैं ताना-रीरी
पहले तो जिनको नही पता है की नरसिंह मेहता कौन है? उनको बता दू की नरसिंह मेहता गुजरात के मशहूर कवि तथा भगवान कृष्ण के परम भक्त थे. महात्मा गांधी के प्रिय भजन ” वैष्णव जन तो ऐने रे कहिए”, नरसिंह मेहता का लिखा हुआ भजन है. नरसिंह मेहता की बेटी का नाम कुवरबाई और कुवारबाई की बेटी का नाम शर्मिष्ठा. ताना तथा रीरी दोनो जुड़वा बहने इसी शर्मिष्ठा की बेतिया थी. ताना रीरी ऐसे महान कलाप्रेमी परिवार की वंशज थी. ताना रीरी का परिवार गुजरात के वडनगर में रहता था. उस समय गुजरात दिल्ली सल्तनत में था.
क्यों तानसेन निकले ताना रीरी की खौज में?
सायद ही कोई ऐसा होगा जो मशहूर गायक तानसेन को न जानता हो. तानसेन बादशाह अकबर के नौरत्नो में से एक थे. तानसेन राग दीपक के जानकार थे. इस राग को गाने पर दीपक अपने आप ही प्रज्वलित हो जाता है. इस राग को गाने में शरीर की बहुत सी ऊर्जा का उपयोग हो जाता है, इसी लिए अगर इस राग को गाने के बाद जबतक बारिश में नहाया ना जाएं तब तक शरीर भयंकर गर्मी से तप्त रहता है.
तानसेन अकबर के प्रिय रत्नों में से एक थे. इसी लिए दरबार में तानसेन से ईर्षा करने वालो की भी कमी नहीं थी. एक बार ऐसा हुआ की बादशाह अकबर चितौड़ के युद्ध के बाद बैचेन हो गए थे. उनको कही से भी मानसिक शांति और सुकून नहीं मिल रहा था. इस समय तानसेन से ईर्षा करने वाले कुछ लोगो ने अकबर को तानसेन से राग दीपक सुनने की सलाह दी. इन लोगो को पता था का अभी बारिश का मौसम नहीं है तथा तानसेन बादशाह को इस समय माना भी नही कर पाएगा. ऐसे में राग दीपक गाने से तानसेन का पूरा शरीर गर्मी से जलने लगेगा.
बादशाह ने इन लोगो की बातो में आकर तानसेन को राग दीपक गाने के लिए कहा. तानसेन ने बड़ी विनम्रता सीना करने की कोशिश की लेकिन उसकी एक न चली. आखिरकार तानसेन को अकबर को खुश करने के लिए राग दीपक गाना ही पड़ा. इसके बाद तानसेन का पूरा शरीर अग्नि से जाने पूरा शरीर जल रहा हो ऐसी पीड़ा देने लगा. अकबर को भी अब अपनी भूल का पता चल गया लेकिन अब देर हो चुकी थी.
शरीर की इस जलन से बचने का एक ही उपाय था, बारिश. ओर इस बिन बारिश के मौसम में बारिश वही करवा सकता है जिसे राग मल्हार आता हो. भले ही तानसेन इतना बड़ा गायक हो लेकिन राग मल्हार में तो वो भी कच्छा था. तानसेन ने अब मन बना लिया की वी अब पूरे भारत का भ्रमण करेंगे और ऐसे कलाकार को ढूंढेंगे जो इनके लिए राग मल्हार गा सके.
ताना रीरी ने तानसेन के लिए गाया राग मल्हार
मल्हार राग गा सके ऐसे कलाकार को ढूंढते ढूंढते आखिर तानसेन आ पहुंचे गुजरात के वडनगर में. इस तरफ पूरे देश में भी ए बात फेल चुकी थी की तानसेन किसी अच्छे कलाकार की खौज में निकले है. ताना रीरी भी इस बात से अवगत थे.
ताना रीरी के पिता तानसेन को मिलने उनके स्थान पर गए और उनसे अच्छे गायक की खौज के बारे में पूछा. उस समय तानसेन ने पूरी कहानी बताई और कहा की वे ऐसे कलाकार को ढूंढ रहे जो राग मल्हार गा कर बारिश करा सके और उनको इस पीड़ा से मुक्ति दिला सके.
ताना रीरी दोनो बहने भगवान कृष्ण की बड़ी भक्त थी. ताना रीरी को राग मल्हार पता था लेकिन दोनो बहने गाना मात्र अपने भगवान के लिए ही गाती थी. ताना रीरी की ये बात उनके पिता को पता थी और दूसरी तरफ उनको तानसेन की पीड़ा के बारे में भी पता था. इसीलिए उन्होंने ताना रीरी को राग मल्हार गाने के लिए दरखास्त की. ताना रीरी एक शर्त पर मल्हार गाने की राजी हुई की ऐ बात तानसेन किसी को नही बताएंगे खास कर बादशाह अकबर को. उनको ये बात पता थी की जब बादशाह को इस बारे में पता चलेगा तो वो उन्हे दिल्ली बुला सकते है, और वहा पे उन्हे पूरे दरबार में गाने के लिए मजबूर कर सकते है. भगवान के इलावा किसी और के सामने गाना ताना रीरी को मंजूर नहीं था.
आखिरकार पिता की बात मानकर दोनो बहनों ने पूरे मन से तानसेन के लिए राग मल्हार गाया. राग मल्हार की वजह से जोरो की बारिश हुई और तानसेन को अपनी पीड़ा से मुक्ति मिली. ताना रीरी के घरवालों ने तानसेन से वचन लिया की वे ताना रीरी के बारे में दिल्ली में किसीको नही बताएंगे.
ताना रीरी के लिए अकबर ने भेजी फौज
तानसेन स्वस्थ हो कर दिल्ली पहुंचा. बादशाह अकबर तानसेन को देखकर बहुत ही प्रसन्न हुए और उनका इलाज कैसे हुआ इसके बारे में पूछा. तानसेन ने पूरी बात बताई लेकिन ताना रीरी का नाम नहीं बताया. दूसरी तरफ अकबर ऐसे खास कलाकारों को अपने दरबार में सामिल करना चाहते थे. इसीलिए उसने तानसेन को कहा की अगर नाम नहीं बताया तो उसे फांसी पे चढ़ा दिया जाएगा. आखिरकार मौत से डरकर तानसेन ने ताना रीरी के बारे में पूरा सच बता दिया.
ताना रीरी के बारे में पता चलते ही अकबर ने वडनगर के सूबेदार के फतवा भेजा. जिसमे लिखा था की तुरंत ही ताना रीरी को दिल्ली दरबार में हाजिर किया जाए. इस तरफ ताना रीरी ने भगवान के इलावा किसी और के सामने गाने से मना कर दिया. पूरा वडनगर ताना रीरी के परिवार के साथ खड़ा हो गया और उन्हे दिल्ली भेज ने से मना कर दिया. इससे नाराज हों कर अकबर ने एक पूरी पलटन को वडनगर पर कब्जा करने के लिए भेज दिया. जब ताना रीरी को इस बात का पता चला तो उन्हों ने युद्ध ना हो तथा वडनगर के लोगो की रक्षा के लिए खुद ही जहर पी कर आत्महत्या कर ली. ताना रीरी ने अकबर के सामने गाने से अच्छा मरना पसंद किया. इस तरह नरसिंह मेहता की इस दोनो वंशज ने अपने आपको इतिहास के पन्नो में सुवर्ण अक्षरों से अमर कर दिया.
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