चीन हमेशा से एक विस्तारवादी देश रहा है. अरुणाचल तथा लद्दाख को के कर भारत ओर चीन के बीच शरुआत से एक जटिल विवाद रहा है. ना मात्र भारत के साथ लेकीन चीन के अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ जमीन विवाद रहा है खास कर जापान, ताइवान तथा फिलिपींस के साथ. आज हम इस आर्टिकल में विस्तार से जानेंगे की भारत ओर चीन के बीच में अरुणाचल प्रदेश को लेकर क्या विवाद है.
तिब्बत तथा चीन विवाद
अगर आपको अरुणाचल विवाद के बारे में ठीक से समझना है तो पहले थोड़ा तिब्बत और चीन के बीच क्या तकरार है वो जानना जरूरी है. क्युकी अरुणाचल तथा तिब्बत के बीच सदियों से एक सांस्कृतिक संबंध रहे है. तिब्बत शरुआती समय से एक अलग ही देश या साम्राज्य था. 1200 ce में मुगल युआन साम्राज्य ने तिब्बत पर आक्रमण करने उसे अपने साम्राज्य में जोड़ लिया. इस समय भी तिब्बत के अंदर पॉलिटिकल लीडर तो तिब्बत के लामा को ही माना जाता था. लेकिन पूरी सेना तथा प्रशासन युआन साम्राज्य के राजा के पास हुआ करता था.
18वी सदी आते आते चीन की पकड़ तिब्बत में कम हो गई थी क्योंकि चीन में किंग (qing) साम्राज्य कमजोर हो रहा था. 1860 से तिब्बत ने अपने आपको स्वतंत्र देश मानना शुरू कर दिया था. देखिए नीचे दिया गया 1864 एक नक्शा.
1912 तक किंग (qing) साम्राज्य चीन में खत्म ही चुका था. अब तिब्बत ने बाकी बचे भी कुछ चीनी आधिकारिक लोगो को भी अपने देश से निकाल दिया. अब तिब्बत एक स्वतंत्र देश था.
स्वतंत्र तिब्बत तथा ब्रिटिश इंडिया
सही मायने में अरुणाचल (जिसमे भी खास कर के तवांग जिला) तथा लद्दाख का विवाद यही से शुरू हुआ है. इसके लिए नीचे दिए गए दोनों नक्शे देखें. पहला नक्शा जो है वह 1909 में बना ब्रिटिश इंडिया का नक्शा है. इसके अंदर अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों को जैसे कि तवांग को तिब्बत के अंदर दिखाया गया है. दूसरा नक्शा1892 का तिब्बत तथा चाइना का है इस नक्शे में अरुणाचल प्रदेश को म्यानमार तथा इंडिया में दिखाया गया है.
ब्रिटिश रोको अरुणाचल के इस एरिया में खास कोई रुचि नहीं थी. वहां पर कोई खास आबादी नहीं थी ना वहीं से कोई खनिज मिलते थे. दूसरी तरफ ना तो तिब्बत को भी तवांग को छोड़ के बाकी अरुणाचल में कोई रूचि नहीं थी.
1914 का शिमला सम्मेलन
इस समय तक एक तरफ तिब्बत अपने आप को स्वतंत्र राष्ट्र मानता था, और दूसरी तरफ चाइना तिब्बत को अपना हिस्सा मानता था. इसी विवाद के समाधान के लिए 1914 में शिमला तथा दिल्ली में तीन सम्मेलन हुए थे. जिन्हें शिमला करार के नाम से जाना जाता है. पहले दो सम्मेलन में ब्रिटिश इंडिया, तिब्बत तथा चाइना शामिल थे. जहां पर ऐसा समझौता हुआ था कि तिब्बत पर दलाई लामा का अधिकार रहेगा. तिब्बत को लेकर प्रशासनिक सभी निर्णय दलाई लामा लेंगे जबकि विदेश नीति और सुरक्षा की जवाब देही चाइना की होगी. इसका सीधा मतलब ऐसा था कि तिब्बत चाइना का भाग होगा लेकिन तिब्बत के अंदर प्रशासनिक सभी निर्णय दलाई लामा द्वारा लिए जाएंगे. तिब्बत के अंदरूनी मामले में चाइना कभी भी दखलंदाजी नहीं करेगा.
इसी सम्मेलन में तिब्बत, चाइना तथा भारत के बीच में सरहद का सीमांकन किया गया था. इस सीमांकन को मैक मोहन लाइन के नाम से जाना जाता है. चाइना इस सीमांकन में बहुत ही परेशानी खड़ी कर रहा था और कोई भी अंतिम निर्णय पर आ नहीं रहा था. इसीलिए ब्रिटिश इंडिया तथा तिब्बत तीसरी बार शिमला सम्मेलन में मिले और यहां पर मैक मोहन लाइन का आखिरी रूप दिया गया. इस समय मैक मोहन लाइन के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है. दूसरी तरफ चाइना मैक मोहन लाइन को आधिकारिक नहीं मानता है और वह मानता है कि अरुणाचल खासकर कर तवांग को तिब्बत का एक ही हिस्सा मानता है.
बाद में 1950 जब भारत में से ब्रिटिशर्स चले गए थे और दूसरी तरफ चाइना में माओ जे़ डोंग की सरकार बन चुकी थी. इस समय चाइना ने तिब्बत आक्रमण करके पूरा तिब्बत चाइना में मिला दिया.इस समय से लेकर आज तक चाइना अरुणाचल प्रदेश को अपना एक भाग मानता है.
तवांग का धार्मिक महत्व
तवांग भौगौलिक रूप से बहुत ही अहम शहर है. भारत के राज्य अरणाचल प्रदेश के उत्तरी भाग में है तवांग जिला, जिसका मुख्य शहर है तवांग. चीन की बुरी नजर तवांग पर मात्र इस लिए नही है के वो सीमा पर का एक शहर है, तवांग इसी लिए भी ऐतिहासिक महत्वपूर्ण है क्योंकि तिब्बत के छठवें दलाई लामा का जन्म इसी तवांग में हुआ था.
दलाई लामा एक उपाधि है. तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रमुख आध्यात्मिक नेता को दलाई लामा कहा जाता है. अभी तक कुल मिलाकर 14 दलाई लामा हुई है. 14वें और वर्तमान दलाई लामा तेनज़िन ग्यात्सो हैं, जो भारत में शरणार्थी के रूप में रहते हैं. दलाई लामा तिब्बत के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति माने जाते है. 6वें दलाई लामा का जन्म उर्गेलिंग मठ के “मोन्युल” में हुआ था, जो आधुनिक समय में अरुणाचल प्रदेश का तवांग है.
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