आमतौर पर किसी भी व्यक्ति को 2 से 3 भाषा का ज्ञान होता है. अगर किसी को 5 या 6 भाषा पता होंगी तो हम उसे बहुत ही ज्ञानी मानते है. लेकिन आज हम ऐसे प्रधानमंत्री के बारे में बात करने वाले है जिन्हे 17 भाषा का ज्ञान था.
भारत के ये प्रधानमंत्री का नाम है पमुलापर्थी वेंकट नरसिम्हा राव जिन्हे हम पी वी नरहिम्हा राव के नाम से जानते है. पी वी नरसिम्हा राव भारत के 9 वे प्रधानमंत्री थे. उन्हें 1991 से शुरू हुई भारतीय अर्थव्यवस्था की उदारीकरण के लिए जाना जाता है. 1991 से लेकर 1996 तक वे भारत के प्रधानमंत्री थे. लेकिन बहुत ही कम लोगो को पता होगा की वे 17 विभिन्न भाषाओं के जानकार थे. पी वी नरसिम्हा राव को 10 भारतीय भाषा तेलुगु (मातृभाषा),हिंदी, संस्कृत, गुजराती, मराठी, तमिल, कन्नड़, उड़िया, बंगाली तथा उर्दू का ज्ञान था. इसके उपरांत उन्हें 7 विदेशी भाषा इंग्लिश, स्पेनिश, फ्रेंश, अरेबिक, जर्मन, पर्शियन तथा लेटिन भी आती थी.
पी वी नरसिम्हा राव का अभ्यास पुणे की फर्गुशन कॉलेज तथा मुंबई यूनिवर्सिटी में हुआ था. इसी समय मराठी पी उनकी अच्छी पकड़ बन चुकीं थीं. एक समय उन्हें अखिल भारतीय मराठी समेलन के मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया था तब उन्होंने अपना पूरा भाषण शुद्ध मराठी में देकर अचंबित कर दिया था. उन्होंने हरि नारायण आप्टे के प्रसिद्ध मराठी उपन्यास “पण लक्ष्य कोन घेतो” का तेलुगु में अनुवाद किया है. उन्होंने कई अन्य प्रसिद्ध रचनाओं का मराठी से तेलुगु और तेलुगु से हिंदी में अनुवाद किया.
नरसिम्हा राव एक ऐसे बौद्धिक दिग्गज जिन्होंने अपने जीवन के आखरी समय तक सीखना बंद नहीं किया था. 80 के दशक में वे राजीव गांधी के कैबिनेट में मंत्री थे. राजीव गांधी को भारत में डिजिटल क्रांति के प्रेरक माना जाता है, वो ऐसा मानते थे नरसिम्हा राव पुरानी पीढ़ी के व्यक्ति है और उनको कंप्यूटर का ज्ञान नहीं है. इस समय पी वी नरसिम्हा राव ने एक प्राइवेट टीचर रख के कंप्यूटर तो शिखा ही लेकिन साथ में उन्होंने बेसिक, कोबोल तथा यूनिक्स जैसी प्रोग्रामिंग भाषाएं भी सिख ली. शायद उस समय राजीव गांधी को भी ये कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषाओं का ज्ञान नहीं होगा.
नरसिम्हा राव भारतीय फिलोशोफी और संस्कृति में गहरी दिलचस्पी थी. उन्होंने विश्वनाथ सत्यनारायण के प्रसिद्ध तेलुगू उपन्यास “वेई पदगालु” का हिंदी अनुवाद “सहस्र फान” के नाम से प्रकाशित किया था. उन्होंने काफी कविताए, उपन्यास तथा राजनीतिक टिप्पणियां लिखी थी. उन्होंने एक उपन्यास “the insider” भी प्रकाशित किया, जिसने राजनीतिक हलकों में तूफान ला दिया.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने अपनी पुस्तक “टू द ब्रिंक एंड बैक” में लिखा है कि, जुलाई 1991 में तत्कालीन सरकार द्वारा किए गए विश्वास मत के दौरान संसद में नरसिम्हा राव के भाषण में उनकी संस्कृत की महारत ने काफी प्रभाव डाला था.
राव एक प्रबुद्ध पाठक थे, वे अपने पीछे अलग अलग भाषाओं में लिखी 10,000 से अधिक पुस्तकों के संग्रह के साथ एक पुस्तकालय छोड़ गए हैं. जिनमें से कई दुर्लभ पुस्तके हैं. यह पुस्तकालय अभी आंध्र प्रदेश के बेगमपेट में स्वामी रामानंद तीर्थ ट्रस्ट में कार्यरत है.
पी वी नरसिम्हा राव एक एक प्रखर राष्ट्रनेता भी थे. एपीजे अब्दुल कलाम ने राव को एक ऐसा देशभक्त नेता मानते थे जो देश को राजनीतिक से बड़ा मानते है. कलाम ने स्वीकार किया कि वास्तव में राव ने उन्हें 1996 में परमाणु हथियारों के परीक्षण के लिए तैयार होने को कहा था, लेकिन 1996 के भारतीय आम चुनाव के बाद सरकार बदलने के कारण ऐसा नहीं किया गया था.
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