आजकल समाचारों में Recession यानी कि आर्थिक मंदी के बारे में बहुत कुछ सुनाई देता है. हर एक समाचार में दिखाया जा रहा है कि पूरा विश्व तथा अमेरिका आर्थिक मंदी(Recession) की चपेट में आने वाला है. चलिए आज हम जानते हैं कि यह Recession किसे कहते है.
आर्थिक तेजी तथा आर्थिक मंदी(Recession) किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए एक सिक्के के दो पहलू हैं. जब भी एक तेजी का दौर चलता है तो उसके बाद एक मंदी का दौर आता ही है. और ऐसी आर्थिक मंदी किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी है. अगर कोई भी अर्थव्यवस्था लगातार तेजी में रहती है तो वहां पर इन्फ्लेशन(inflation) यानी कि मुद्रा स्फ़ीति की परिस्थिति आ जाती है. और किसी भी देश में अगर इन्फ्लेशन(inflation) बढ़ जाती है तो वह देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाती है. जिंबाब्वे इसका एक बेहतरीन उदाहरण है.
जब भी किसी देश में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कम हो जाता है, बेरोजगारी का स्तर बढ़ जाता है, खुदरा बिक्री में गिरावट होती है, और लोगों की आय में गिरावट होती है तो अर्थशास्त्री इसे आर्थिक मंदी के तौर पर घोषित करते हैं.
मंदी की आधिकारिक परिभाषा (Definition of Recession)
किसी भी देश की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि (GDP Growth) अगर लगातार दो तिमाही(quarter) तक नेगेटिव रहता है तो उसे आधिकारिक तौर पर इस देश में आर्थिक मंदी आ चुकी है ऐसा माना जाता है. और इस विचार को सबसे पहले 1974 मैं कमिश्नर ऑफ ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिक्स, Julius Shiskin ने दिया था.
लेकिन सभी देश उपरोक्त परिभाषा को मान्य नहीं रखते हैं. कुछ देशों के हिसाब से अगर कुछ महीनों तक जीडीपी ग्रोथ नकारात्मक रहती है तथा बेरोजगारी लगातार बढ़ती रहती है सभी उसे आर्थिक मंदी कहते हैं. यहां पर महीने कितने होंगे वह उस देश के सेंट्रल बैंक के अर्थशास्त्रियों के द्वारा तय किया जाता है. लेकिन ज्यादातर देशों में दो तिमाही तक जीडीपी ग्रोथ नकारात्मक है तो उसे Recession मान लिया जाता है.
Recession (मंदी) क्यों आता है?
जैसे हम ने बताया कि अर्थव्यवस्था में तेजी तथा मंदी एक सिक्के के दो पहलू हैं. कभी भी किसी भी अर्थव्यवस्था में लगातार तेजी आती है तो उसके बाद आर्थिक मंदी आना निश्चित है. आर्थिक मंदी के लिए काफी कारण हो सकते हैं.
अभी की बात करें तो 2019 में कोरोना काल में पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था तबाह हो चुकी थी. इसीलिए विश्व के तकरीबन सभी देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था को सुचारू बनाने के लिए बहुत सारे रुपए प्रिंट करके अर्थव्यवस्था में डालें. इसकी वजह से लगातार 2 साल तक सभी देश की अर्थव्यवस्था लगातार के लिए आगे बढ़ती रही. लेकिन दूसरी तरफ घरेलू उत्पादों की डिमांड पैसों की सप्लाई के सामने उतनी ज्यादा नहीं बढ़ी.इसकी वजह से सभी चीजों के दाम बढ़ने शुरू हो गए. मतलब तुम धीरे-धीरे इन्फ्लेशन(inflation) बढ़ता जा रहा था.
इन्फ्लेशन को काबू में रखने के लिए लव तकरीबन सभी देशों के सेंट्रल बैंक को ब्याज दर में वृद्धि की. इससे यह पूरा रुपया मार्केट से सेंट्रल बैंकों की तरफ खींचना शुरू हुआ. अभी ऐसा माहौल बन रहा है कि रिसेशन (Recession) आने वाला है.
भारत में अभी तक कितनी बार आर्थिक मंदी(Recession) आई है?
अभी तक देखा जाए तो भारत में कुल 4 बार आर्थिक मंदी का सामना किया है. सबसे पहली आर्थिक मंदी आई थी सन 1957-58जब जीडीपी 1.2 प्रतिशत सिकुड़ी.पहली आर्थिक मंदी का कारण था भारत के आयात बिल बहुत ज्यादा बढ़ चुके हैं. उसके बाद दूसरी आर्थिक मंदी भारत में 1965-66 में आई जब जीडीपी 3.7 प्रतिशत कम हुई. दूसरी आर्थिक मंदी के पीछे कारण था सुखा जिसके के कारण खाद्यान्न उत्पादन में 20 प्रतिशत की गिरावट आई थी. पाकिस्तान तथा चीन के साथ युद्ध भी इसका कारण था
तीसरी मंदी 1972-73 आई जब जीडीपी 0.3% लुढकी. तीसरी आर्थिक मंदी के पीछे का कारण था ओपेक कंट्रीज द्वारा क्रूड के प्राइस में 400% तक की बढ़ोतरी करना. उस समय क्रूड ऑयल $3 से सीधा $12 तक पहुंच चुका था. भारत एक क्रूड ऑयल का आयात करता देश था जिसकी वजह से हमें तीसरी आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा. चौथी मंदी 1979-80 आई जब जीडीपी 5.2% तक कम हो चुकी थी.चौथी आर्थिक मंदी का कारण था हमारा आयात हमारे निर्यात से बहुत ही ज्यादा बढ़ चुका था. इस समय के दौरान, भारत के निर्यात में भी 8% की कमी आई, जिससे भुगतान संतुलन संकट पैदा हो गया.
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