Thursday, November 21, 2024
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कौन है मकरध्वज? जिसने हनुमानजी को ललकारा था?

एक बार हनुमान जी पाताल लोक में राम तथा लक्ष्मण को बचाने के लिए गए थे. जहां पर पाताल लोक का द्वारपाल था मकरध्वज. मकरध्वज ने हनुमान को युद्ध के लिए ललकारा और उन दोनों के बीच में काफी भीषण युद्ध हुआ. मकरध्वज ने हनुमान जी को युद्ध में भारी टक्कर दी थी. चलिए इस आर्टिकल वे जानते हैं कि हनुमान जी को भी टक्कर देने वाला यह वीर मकरध्वज था कौन? 

कौन है मकरध्वज?

मकरध्वज असल में हनुमान जी का ही बेटा था. हनुमान जी तो बाल ब्रह्मचारी थे तो फिर मकरध्वज उनका बेटा कैसे हुआ? आप भी यही सोच रहे होंगे. चलिए जानते हैं मकरध्वज के जन्म की कहानी.

मकरध्वज का जन्म कैसे हुआ?

हनुमान जी सीता मैया को बचाने के लिए लंका गए थे. यहां पर रावण ने हनुमान जी की पूंछ पर आग लगा दी थी.  इसी जलती हुई पूछ से हनुमान जी ने पूरे लंका को आग लगा दी थी. लेकिन इस जलती हुई पूछ से उनको बहुत ही पीड़ा हो रही थी. जिस को शांत करने के लिए वह समुद्र के पास गए और पूछ की आग को बुझा दिया.इस समय उनके शरीर से पसीने की एक बूंद सागर में गिरी थी. यह बूंद सागर में रह रहे एक मगर यानी कि मकर के मुख में गई. इस पसीने की बूंद की वजह से इस मकर ने गर्भधारण किया. आगे चलकर इस मकर को जो बच्चा हुआ उसी का नाम पड़ा मकरध्वज. 

मकरध्वज अपने पिता की तरह ही बहुत ही शूरवीर था. पाताल के राजा अहिरावण मकरध्वज की शूरवीरता से बहुत ही प्रभावित थे. इसीलिए राजा अहिरावण ने मकरध्वज को पाताल लोक का द्वारपाल नियुक्त किया था.

मकरध्वज और हनुमान जी के बीच युद्ध

पाताल का राजा अहिरावण देवी महामाया का बहुत ही बड़ा भक्त था. रावण ने अपने भाई पाताल के अहिरावण को समझाया था कि राम तथा लक्ष्मण की बलि देने से महामाया बहुत ही प्रसन्न होगी. इसीलिए अहिरावण ने राम तथा लक्ष्मण का हरण किया और उन को पाताल लोक ले कर आ गया. हनुमान जी राम तथा लक्ष्मण को बचाने के लिए पाताल लोक में गए.

यहां पर हनुमान जी का सामना हुआ पाताल के द्वारपाल मकरध्वज से. मकरध्वज आधा वानर की तरह और आधा मगर की तरह दिखते थे. इसीलिए जब हनुमान जी ने उनको अपना परिचय देने के लिए कहा तो मकरध्वज ने अपना परिचय हनुमान पुत्र मकरध्वज ऐसा कह कर दिया. हनुमान जी ने कहा कि मैं ही हनुमान हूं और मैं तो बाल ब्रह्मचारी हूं, तो तुम मेरे पुत्र नहीं हो सकते हो? लेकिन जब हनुमान जी ने ध्यान योग से पता लगाया तो उनको पता चला कि मकरध्वज उनके पसीने से उत्पन्न हुआ उनका ही पुत्र है.

यह बात जानने के बाद हनुमान जी मकरध्वज से युद्ध करना नहीं चाहते थे. और दूसरी तरफ मकरध्वज भी अपने राजा अहिरावण की रक्षा के लिए वचन बंधित था. इसीलिए ना चाहते हुए भी हनुमान जी और मकरध्वज के बीच भीषण युद्ध हुआ. इस युद्ध में आखिरकार हनुमान जी ने मकरध्वज को पराजित करके बांध दिया. इसके बाद उन्होंने राम तथा लक्ष्मण को अहिरावण के चंगुल से मुक्त किया.

धरती लोग की तरफ वापस जाते समय भगवान राम ने बंधित अवस्था में पड़े मकरध्वज के बारे में हनुमान जी से पूछा. तब हनुमान ने मकर ध्वज के बारे में पूरी सच्चाई बताई. मकरध्वज की शुरवीरता और अपने राजा के प्रति सच्ची भक्ति से खुश होकर भगवान राम ने मकरध्वज को पाताल लोक का राजा नियुक्त किया.

मकरध्वज के वंशज

मकरध्वज का एक पुत्र था जिसका नाम मोद-ध्वज था और उसका एक पुत्र था जिसका नाम जेठी-ध्वज था. क्षत्रियों का जेठवा वंश अपने आप को जेठी-ध्वज के वंशज मानते है. जेठवा वंश ने गुजरात के सौराष्ट्र में खास कर के पोरबंदर में शाशन किया था. जेठवा वंश हनुमाजी को अपने कुळ देवता मानते है.

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