हम सामान्य तौर पर अखबारों में पढ़ते रहते है की आज सीबीआई ने कोर्ट में नार्को टेस्ट के लिए दरखास्त की है, या फिर ए अपराधी का नार्को टेस्ट होने वाला है. तो आज हम लोग विस्तार से जानेगे की ए नार्को टेस्ट असिलियत में है क्या. तथा नार्को टेस्ट में ऐसी तो क्या बात है जिससे इसको करने से पहले पुलिस को कोर्ट से मंजूरी लेनी पड़ती है. ऐसा ही एक दूसरा टेस्ट है पोलिग्राफ टेस्ट जिसे भी अपराधी पर किया जाता है. आज हम ऐ भी जानेगे की नार्को टेस्ट तथा पोलीग्राफ टेस्ट के बिच क्या फर्क होता है.
नार्को टेस्ट क्या है?
नार्कोएनालिसिस टेस्ट को हम नार्को टेस्ट कहते है. नार्को टेस्ट में सोडियम पेंटोथल या सोडियम थायोपेंटल नामक दवा जिसे ट्रुथ सीरम भी कहा जाता है, इसे आरोपी के शरीर में डाली जाती है. ए दवाई व्यक्ति के मस्तिस्क को एक ऐसी अर्धजाग्रुक अवस्था में ले जाती है, जिसमें उनकी कल्पना बेअसर हो जाती है. आदमी का दिमाग इस अवस्था में ज्यादा सोच विचार करने में असमर्थ हो जाता है. इस निद्रावस्था मे आरोपीन के लिए झूठ बोलना बहोत ही कठिन हो जाता है. इसी लिए पुलिस आरोपी से सच उगलवाने के लिए नार्को टेस्ट का सहारा लेती है.
नार्को टेस्ट के लिए कोर्ट की अनुमति क्यु लेनी पड़ती है?
नार्को शब्द ग्रीक शब्द नारके से आया है. जिसका मतलब है सुन्न या फी बेहोश हो जाना. इस पद्धति में इस्तेमाल होने वाली दवाईयों को नरकोटिकस दवाई कहते है. ए सब दवाइया मनोचिकित्चा में उपयोग होती है. तथा इस दवाई को निष्णांत दोक्टोरो के निर्देश अनुशार ही लेना चाहिए. अगर नारकोटिक्स दवाई का असर व्यक्ति पर ज्यादा होता है तो व्यक्ति कोमा में जा सकता है या फिर उसकी मृत्यु भी हो सकती है.
इस दवाई को व्यक्ति के शरीर में डालने से पहले उसके शरीर की पूरी तरह से जाँच की जाती है. नार्को टेस्ट से पहले आदमी को कोई गंभीर बीमारी नहीं होनी चाहिए. सभी जाँच के बढ़ ही नार्को टेस्ट की अनुमति मिलती है. इस टेस्ट ते दौरान भी व्यक्ति का ब्लड प्रेशर तथा पल्स रेट लगातार मोनिटर किया जाता है.
आरोपी को दी जाती है पूरी प्रकिया की जानकारी
नार्को टेस्ट पहले आरोपी को टेस्ट के दौरान होने वाली पूरी प्रक्रिया के अवगत किया जाता है. टेस्ट पहले आरोपी की लेबोरेटरी में निष्णांत डॉक्टर की उपस्थिति में जाँच होती है. मनोवैज्ञानिक आरोपी से बात करके आरोपी की सहमती भी लेते है.
नार्को टेस्ट तथा पॉलीग्राफ टेस्ट में क्या अंतर है?
नार्को टेस्ट तथा पॉलीग्राफ टेस्ट में काफी अंतर है. पालीग्राफ टेस्ट एक प्रकार का लाई डिटेक्टर (झूठ पकडनेवाला) टेस्ट है. पॉलीग्राफ टेस्ट में व्यक्ति के शरीर में कोई भी दवाई डाली नहीं जाती है. इस टेस्ट में व्यक्ति को एक मेडिकल मचिन से जोड़ा जाता है. आरोपी की पूछताछ के दौरान इस मचिन द्वारा उसके ब्लड प्रेशर, हार्ट पल्स रेट,श्वसन, पसीने की ग्रंथि गतिविधि में परिवर्तन, रक्त प्रवाह, आदि को मापा जाता है. पोलीग्राफ टेस्ट के दौरान अगर आरोपी झूठ बोलता है तो मचिन तुरंत ही पकड़ लेती है. लेकिन कुछ लोगो का अपने शरीर पर खास कण्ट्रोल होता है वे इस टेस्ट में भी आसानी से झूठ बोल लेते है.
ऐसे टेस्ट क्यों किए जाने चाहिए?
ए एक प्रकार का आरोपी की और नर्म मानवीय अभिगम है. सामान्य तौर पे आरोपी से सच उगलवाने के लीये “थर्ड डिग्री” दिया जाता है. जिसमें कभी बेकुसूर को भी यातना से गुजरना पड़ता है. इसी लिए हाल के दशकों में, जांच एजेंसियों ने इन परीक्षणों को जांच में लगाने की मांग करते है.
क्या नार्को टेस्ट परिणामों को आरोपी का आखरी कबूलनामा (confessions) माना जाता है?
नहीं, कोर्ट में नार्को टेस्ट के परिणाम को आरोपी का आखरी कबूलनामा (confessions) माना नहीं जाता. क्योकी एकप्रकार से देखा जाये तो आरोपी नार्को टेस्ट में नशे की हालत में होता है. हालांकि, स्वेच्छा से दिए गए नार्को टेस्ट के परिणामो की मदद से बाद में खोजी गई किसी भी जानकारी या सामग्री को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है. लेकिन मात्र नार्को टेस्ट के परिणाम को अंतिम नहीं मन जाता. इसको प्रमाणित करने के लिए दुसरे साक्ष्य की भी जरुरत पड़ती है.
और भी पढ़े
- जानिए एक ऐसी नदी के बारे में जिसका पानी रक्त जैसा लाल है.
- world’s shortest man – दुनिया का सबसे छोटा आदमी.
- बटन की शोध कहां पर हुई थी?
Reference