Saturday, May 18, 2024
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पशु, पक्षी तथा वनस्पतियों के वैज्ञानिक नाम हमेशा लेटिन भाषा में क्यों होते हैं?

हमने स्कूल तथा कॉलेज में पढ़ा है की हर एक वनस्पति, पशु या पक्षी का वैज्ञानिक नाम लेकिन भाषा में होता है. जबकि सबसे कॉमन बोलने वाली भाषा अंग्रेजी है तथा पुरानी भाषा संस्कृत है. फिर भी वैज्ञानिक वर्गीकरण लेकिन भाषा में ही किया गया है चलिए जानते है ऐसा क्यों है? 

यह जानने के लिए थोड़ा हमें इतिहास में जाना पड़ेगा.  पशु पक्षी तथा वनस्पति की लाखों प्रजातियां है. जेसे की वनस्पति की 350000 प्रजाति है. छोटे कीटको की 925000 प्रजाति है. प्राणियों की 100000 से भी ज्यादा प्रजाति है तथा मछलियों की 20000 प्रजाति है. इन सभी का वर्गीकरण करना तथा उनका नामकरण करना बहुत ही बड़ा काम है. वर्गीकरण भी इस तरह से करना है जिससे उनका एक दूसरे के साथ मेल हो और कुछ समानताएं हो. जैसे कि चीता और बिल्ली एक ही वर्ग के प्राणी है.

यह भगीरथ कार्य स्वीडन में जन्मे वैज्ञानिक कैरोलस लीनियस ने किया था. उनका जन्म 23 मई 1707 में हुआ था. उनको वनस्पति शास्त्र बहुत ही रुचि थी. उन्होंने पूरी दुनिया में घूम कर 8000 वनस्पति के नमूने एकत्र किए.  तथा 4400 प्राणी तथा कीटको के नमूनों को एकत्र किया. इन सभी नमूनों का बारीकी से अध्ययन करने के बाद उन्होंने अलग-अलग वर्ग तथा गोत्र मैं उनका वर्गीकरण किया.

carl linnaeus

यह पूरे वर्गीकरण का विस्तार से उल्लेख उन्होने अपनी पुस्तक Systema Naturea में किया. कैरोलस लीनियस ने यह किताब लेटिन भाषा में लिखी थी.  वैसे तो उनको काफी भाषाओं का ज्ञान था जैसे कि ग्रीक, हिब्रू. लेटिन तथा इंग्लिश.  लेकिन के प्रति उनका लगाव थोड़ा ज्यादा था और उस जमाने में लेटिन को विज्ञान की भाषा में आना चाहता था. इसीलिए यह किताब लेटिन भाषा में लिखी. 

कैरोलस लीनियस ने यह किताब इतनी बारीकी से लिखी थी और उन्होंने सभी पक्षी प्राणी तथा वनस्पति का एकदम डिटेल में वर्गीकरण किया था. उन्होंने सभी सजीवों को पहले वंश(class) में वर्गिस किया, वंश को उपवंश(sub-class) में, उपवंश को वर्ग(order) में तथा वर्ग को उप वर्ग(sub-order) में, उप वर्ग को जुथ(group), जुथ को गण(tribe), गण को विभाग(section), विभाग को कुळ(family), कुळ को उपकुल(subfamily), उपकुल को गोत्र(genus), गोत्र को जाती(species) तथा जाती को उपजती(sub-species) में वर्गीत किया.

इस किताब में कितना बारीकी से वर्णन होने की वजह से इसे वनस्पति शास्त्र तथा प्राणी शास्त्र में एक बाइबल की तरह मानी गई.इस किताब में सभी का वर्गीकरण लेटिन भाषा में हुआ था. इसीलिए सभी प्राणी, पक्षी तथा वनस्पति को लेटिन नाम से ही वनस्पति शास्त्र तथा प्राणी शास्त्र के विद्यार्थी जानने लगे. सालों साल यही परंपरा चली आई और इसीलिए विज्ञान में पक्षी, प्राणी तथा वनस्पति का नाम लेटिन भाषा में प्रसिद्ध होने लगा.

तो अब हम जानते हैं कि लेटिन भाषा में लिखी गई पुस्तक Systema Naturea की वजह से आज के जमाने में सभी प्राणी, पक्षी तथा वनस्पति का वैज्ञानिक नाम लेटिन में ही लिया जाता है.

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